कृषि जैव प्रौद्योगिकी

भारतीय कृषि आजादी के बाद पूर्ण परिवर्तन से गुजरी है शुरुआत में, उच्च उपज वाले पौधों की किस्मों को हाइब्रिडाइजेशन द्वारा विकसित किया गया, जिसके बाद उनको उच्च उपज, जैविक और अजैविक तनावों के प्रतिरोध के लिए चयन किया गया जो हमे हरित क्रांति की ओर ले गया। अत्यधिक आबादी वाला देश होने के नाते, हमारा सबसे बड़ा उद्देश्य लाखों लोगों पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराना था  इसलिए कृषि उत्पादों की पोषण गुणवत्ता के बजाय मात्रा पर बड़ा जोर दिया गया। अब समाज के एक बड़े वर्ग में कुपोषण के कारण हमें छिपी हुई भूख से एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है इसलिए, फसल की किस्मों को प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ जैव-फोर्टीफाइड विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है देश में चल रहे प्रयासों के पूरक के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग,भारत सरकार ने 2010 में पंजाब के मोहाली में राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की जिसका उदेश्य कृषि, खाद्य और पोषण जीव विज्ञान के क्षेत्रों में विभिन्न अतिव्यापी अनुसंधान गतिविधियों का संचालन करना है वर्तमान में,संस्थान मार्कर और जीन खोज के लिए पोषण और प्रसंस्करण गुणवत्ता, जीनोम संपादन, जीनोमिक्स और कम्प्यूटेशनल जीव विज्ञान के दृष्टिकोण के लिए अनाज में सुधार के क्षेत्र में काम कर रहा है   संस्थान का मुख्य जोर निम्नलिखित कार्यक्रमों पर है :

  1.  उच्च पोषण,बढ़ती शैल्फ जीवन और प्रसंस्करण गुणवत्ता के साथ डिजाइनर फसलों का विकास करना
  2. मार्कर और जीन खोज के लिए जीनोमिक्स और कम्प्यूटेशनल जीव विज्ञान का उपयोग करना
  3. फसल सुधार के लिए बुनियादी जीव विज्ञान का उपयोग करना